गूगल बॉय - 4

  • 5.9k
  • 1.7k

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 4 बाहर से आकर गूगल ने जैसे ही बैठक में अपने औज़ारों का थैला रखा तो पापा-माँ को आहट हो गयी । माँ उठकर उसके लिये पानी लेने चली गयी। ‘पापा, सारा दिन कैसी रही आपकी तबियत ..?’ कमरे में प्रवेश करते हुए गूगल ने पूछा। ‘बेटे, तबियत काफ़ी ठीक रही....दिन भर बुख़ार तो नहीं चढ़ा, परन्तु कमजोरी अधिक आ गयी है... कुछ भी खाने का मन नहीं होता.... सब कुछ कड़वा-सा लगता है’, धीरे-धीरे करके गोपाल उठ बैठा। गूगल के आने से उसमें कुछ स्फूर्ति आ गयी थी। माँ