नश्तर खामोशियों के - 3

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नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 3. "डॉ साहब!" चपरासी सामने खड़ा था. "हाँ" मैंने नजरें उठाईं. "साहब, हम बिसरा गए, डॉ.साहब कहे थे कि आपसे कह दें कि तनख्वाह आ गयी है, उसे ले लें आप." दीवार घड़ी की ओर देखा, सवा तीन हो रहा था. मेज पर से पर्स उठाकर उठ खड़ी हुई. गैलरी से देखा, सूरज को छोटे से बादल के टुकड़े ने ढँक लिया था. धूप हल्की हो उठी थी. कैंपस में लगे नीम के पेड़ से ढेर सारे फूल झड़ आये थे. एक अजीब-सी गतिहीनता, एक उदास सा ठहराव चारो ओर फैला था. लगा, क्योंकि खुद