महाकवि भवभूति - 9

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महाकवि भवभूति 9 रचनाधर्मिता के आइने में रंगकर्म जब-जब हम किसी को सीख देने की आवश्यकता अनुभव करते हैं तब-तब हमारे समक्ष यह प्र्रश्न आकर खड़ा हो जाता है कि हम किन शब्दों का उपयोग करें, जिससे उस बात के महत्व को समझ कर वह व्यक्ति चरित्रवान बन जाये। यही सोचते हुये दुर्गा अनुभव कर रहीं थी , आज जब गण्ेश घर आया उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। उससे यह सब देखा न गया तो वह उसके कक्ष के दरवाजे पर जाकर बोली- ‘घर में तुम्हारा इस तरह आना शेाभा नहीं देता।’ गण्ेाश उनके पास आकर