योका दर्द से तड़प रहा था. नूपर योका की चोटों का उपचार करना चाहती थी. लेकिन यहां उसके पास कोई दवाई न थी.वह इसी उधेड़बुन में कभी योका के पास बैठती कभी झोपड़ी के दरवाजे टर खड़ी हो जाती. सरदार और तन्वी भी वापस नहीं आये थे.योका होंठों को भींचे आँखें बंद किए पड़ा था.नूपर उसके दर्द को महसूस कर पा रही थी.परेशान सी नूपर योका के पास बैठ गई. तभी उसे लगा झोपड़ी के अंदर कोई आया है. उसने मुड़कर देखा.मनकी थी.उसके हाथ में पत्थर का बर्तन था.मनकी ने पत्थर के बर्तन से हरे रंग का लेप