लघुकथाएँ

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बड़ा होता बचपन माँ ! कहाँ है। देख ! मेरे पास क्या है ?पार्वती चूल्हे के सामने बैठी रोटी सेक रही थी। हाथ का काम छोड़ बेटे की ओर हाथ बढ़ाया। " क्या है रे ! दिखा तो .. "गौरव ने पोलिथिन आगे बढ़ाया। पोलिथिन में अधखाए केक के टुकडे, थोङे से फैंच फ्राई, एक समोसा था। बेचारा बिन बाप का बच्चा। खाने को मिला केक भी घर उठा लाया। दस साल की इस उम्र में जब बाकी बच्चे खेल में मस्त रहते हैं, गौरव जिंदगी के जोड़ घटाव समझने लग गया। उसकी आँखों में छाए सवाल से