लोकाख्यान में जीवन की खोज: कही ईसुरी फाग

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लोकाख्यान में जीवन की खोज: कही ईसुरी फाग इतिहास अथवा लोक प्रचलित आख्यान से किसी साहित्यिक कृति को यदि कथानक उपलब्ध हो जाने की सुविधा मिल जाती है तो वहाँ इस चिन्ता की चुनौती भी कम नहीं होती कि उसका मूल स्वरूप भी बना रहे और उसमें आज के जीवन-संदर्भ और प्रश्न भी आ जाएँ। वस्तुगत तथ्यरक्षा के दबाव उसकी हदों पर पहरेदारी करते हैं तो रचनात्मकता के सरोकार उससे बृहत्तर संसार में निकल आने का आग्रह करते हैं। इस द्वन्द्व का समाधान ‘कुछ हम मान जायें कुछ तुम मान जाओ ’ के समझौते के तहत नहीं होता