बना रहे यह अहसास - 10 - अंतिम भाग

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बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 10 पंचानन अस्पताल न जाकर होटेल आया। अपने कमरे में गया। एहतियात से रखे अम्मा के हस्ताक्षरयुक्त विदड्रावल फार्म को थरथराती ऊॅंगलियों से थाम लिया। फार्म में अम्मा का कातर चेहरा नजर आने लगा। उनका युग, उनकी जिंदगी, उनके अभाव का बोध हुआ। ऊॅंगली के पोर से हस्ताक्षर को छुआ। लगा उसके भीतर आज भी वह पुत्र मौजूद है जो सरस के मार्गदर्शन में खो गया था। उसने फार्म को चिंदी-चिंदी कर डस्टबिन में फेंक दिया। चमत्कार सा हुआ। लगा छाती पर भार था जो ठीक अभी उतर गया। स्नायुओं का खिंचाव, मस्तिष्क पर