महाकवि भवभूति - 8

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महाकवि भवभूति 8 कतिपय सूत्र-संकेत की भाषा राजा महाराजाओं के उल्लेखनीय विशिष्ट कार्य ही इतिहास नहीं होते। जनजीवन से जुड़े अघ्याय भी इतिहास की परीधि में आते हैं। इन दिनांे एक प्रश्न मेरे चित्त् को झकझोरता रहता है कि भवभूति के समय में व्यापार व्यवस्था किस प्रकार की रही होगी ? इस प्रश्न को हल करने के लिये याद आने लगते हैं बंजारा जाति के लोग। उन दिनों घुमन्तु (यायावर) प्रवृत्ति के व्यापारियों को लोग बंजारे ही कहा करते थे। प्राचीनकाल से ही व्यापार करने के लिये बंजारे अपने पशुओं पर माल लादकर देशाटन किया करते थे।