नियति

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वह स्याह काली रात थी जब उसके जीवन में भी अंधकार के काले बादल छा गए थे । वह सोचती यह रात तो खत्म हो जाएगी पर उसके जीवन में आई स्याह काली रात कब खत्म होगी। सब कुछ ठीक चल रहा था कि उसकी खुशियों को ऐसा ग्रहण लग गया था जिसकी समय सीमा दिखाई नहीं दे रही थी।इंसान भी कभी कभी कितना असहाय हो जाता है नियति के आगे, न जी सकता है न मर सकता है ।कभी कभी वह सोचती कि जिंदगी को खत्म कर लूँ फिर शाश्वत का ख्याल आता था कि उसे कौन देखेगा।कितनी खुश