अपने-अपने इन्द्रधनुष (4) कई दिनों के उपरान्त विक्रान्त आज काॅलेज में दिखाई दिया। मुझे वह बदला-बदला सा लगा। चेहरे पर बेतरतीब-सी उगी दाढ़ी जैसे कई दिनों से समय न मिला हो शेव करने का। कुछ कमजोर-सी। सबसे बढ़ कर उसमें यह बदलाव परिलक्षित हो रहा था कि सबके व्यक्तिगत् जीवन की जानकारियाँ जुटाना व उनको ले कर व्यंग्यात्मक कटाक्ष करने व हँसने का शगल उसके स्वभाव से नदारद था। स्टाफरूम में मुझे देख कर वह मुस्कराया व अभिवादन करता हुआ मेरे समीप आ कर मेरा कुशलक्षेम पूछने लगा। औपचारिकता पूरी करने के पश्चात् भी वह मेरे पास बैठा रहा। कदाचित्