गोधूलि - 2

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गोधूलि (2) फिर तीन साल के लिए मैं दूसरे शहर चला गया। उससे कोई सम्पर्क नहीं रहा। लौटा, तो उसी तरह, रात शुरू होने के पहले होटल डी. कश्मीर चला गया। बारिश हो कर चुकी थी। मिट्‌टी से गंध उठ रही थी। क्यारियों में सफेद नारंगी हरसिंगार टूटे थे। ऊपर अंधेरा था। सन्नाटा भी । पाँचों कमरों में जाने वाली दूब की पगडंडी पानी में डूबी थी। उस पर नींबू के टूटे फूल और पत्तियाँ तैर रहीं थीं। कमरों वाले हिस्से में अंधेरा था। खिड़कियाँ बंद थीं। दरवाजे बंद थे। मैं थोड़ा और आगे आया। दरवाजे के कांच से अंदर