महाकवि भवभूति 7 अतीत का झरोखा मालतीमाधवम् शोभयात्रा में समग्र जीवन की झांकी संयुक्तरूप से एकरस होकर मुखरित हो उठती है। विविधता में एकता के दर्शन का आनन्द शोभायात्रा से मिलता है। किसी लेखक अथवा रचनाकार को अपने सृजन पर पुनर्विचार अवश्य ही करना चाहिये। मेरा आग्रह है कि वे अपने लेखन पर एक बार पुनर्दृष्टि डालकर देखें और यह सुनिश्चित कर लें कि वर्तमान में उसमें कही बातों का मूल्य यथावत हैं या नहीं। क्या वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनका लेखन उतना ही सटीक है, जितना कि लेखनकाल में था। सही सोचकर भवभूति अपने नाटक मालतीमाधवम् पर पुनर्विचार