दिन ढ़लते ही योका गन्ने के खेत से बाहर निकल आया. उसके हाथ में पत्थर का बर्तन था.जिसमें गन्ने का रस भरा था."चलें"योका को बाहर आया देखकर नूपुर उठ खड़ी हुई."हां.चलो."कहते हुए योका ने उसकी अंगुली पकड़ ली."तुम्हारे घर वाले मुझे रख लेगें. "नूपुर ने योका के साथ चलते हुए पूँछा."हमारे यहां स्त्री, बूढे और बच्चों को सब अच्छे से रखते हैं. तुम्हें भी अच्छे से रखेंगे." नूपुर आश्वत् हो गई."जल्दी ही बस्ती में पहुंचने वाले हैं."योका ने अपनी चाल तेज की."तुम लोग मीठा चावल खाते हो?"नूपुर ने भी अपनी चाल तेज की."हां,लेकिन तुम्हें कैसे पता.?"योका ने रुककर नूपुर की