कहानी दिल की दौलत आर. एन. सुनगरया, मैं बहुत खुश दिख रही हूँ, इसलिये नहीं कि आज मेरी सगाई के लिये वही लोग आ रहे हैं, जिन्होंने करीब दो वर्ष पूर्व असंतुष्ट होकर बाबूजी को टका सा जवाब दे दिया था। मेरी खुशी का कारण यह भी नहीं है कि मेरे गरीब चिंतित माता-पिता के सर से बगैर दहेज के बोझ हट जायेगा और मुझे तन्हार्इ से मुक्ति मिल जायेगी। अब किसी की बॉंहों में झूलूँगी, सुहाने सपने साकार हो जायेंगे। मुझे खुशी सिर्फ इस बात की है कि