30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 11 by Kamlesh Pathak कमलेश पाठक सायों में उलझी एक रात बेला के अंदर एक नदी लगातार बहती है , कभी शांत तो कभी उग्र । कभी इलाहाबाद की गंगा की तरह सीधी सरल तो कभी बनारस की गंगा की तरह बलखाती हुई । यही अंतर्धारा उसका संबल है जिसके सहारे वह बड़े से बड़े हादसों को झेल जाती है। आज ऑफिस से जल्दी निकल गई। मन में हजार सवाल थे। पापा, कृष, कृष, पापा… !!! पापा। दिल्ली जाना पड़ेगा। पापा इस तरह कभी नहीं बुलाते। बहुत जरूरी बात