जय हिन्द की सेना - 8

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जय हिन्द की सेना महेन्द्र भीष्म आठ आठ दिसम्बर की प्रातः, आज पिछले दिनों की अपेक्षा कम कोहरा था। ओस की बूँदें धरती पर कालीन—सी बिछी हरी घास पर पड़ रही सूर्य की स्वर्णिम किरणों से मोतियों की भाँति चमक रही थीं। भारतीय सेना के जवानों के मुँह से निकलती भाप ठंडक की अधिकता प्रकट कर रही थी। प्रकृति से जुड़ा व्यक्ति जब प्रकृति के विमुख जाता है, प्रकृति के सर्वमान्य तथ्या को झुठलाता है, तब उसकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है और जो प्रकृति के साथ सामंजस्य अपनाते हुए अपने कायोर्ं के प्रति रत रहते हैं, वही सफल हो