मायके आए हुए मुझे पूरे दस दिन हो चुके थे.पति विशाल से फोन पर बातचीत करने के बाद उठी ही थी कि देखा,माँ अपना बक्सा खोले बैठी है. बक्से के खुलते ही एक चिर-परिचित भीनी सुगन्ध से सुवासित हो उठा था पूरा घर !छोटे से रेलवे क्वाटर में रहते हुए मैंने माँ,बाबा और बिट्टू के साथ अपने बचपन के वो सुनहरे दिन गुजारे थे.पूरे दिन हम दोनों भाई- बहनों की धमा चौकड़ी! और शोर शराबे से गुलज़ार रहता था हमारा वो पुराना घर. माँ बक्से में सहेजकर रखी वस्तुओं को बाहर निकालती जा रही थी."अरे कुन्नू ! देख तेरी गुड़िया !"