शहरीकरण के धब्बे मैं कहानी का बहुत अच्छा पाठक नहीं हूं।कारण ये है कि हिन्दी कहाँनियों में संवेदना का समावेश बहुत ज्यादा रहता है विषय भी अक्सर वही वही रहते हैं।आज के बदले हुए युग में जहॉ इन्सान मक्कारी की सारी हदें पार करता जा रहा है,एक भिखारी, एक गरीब,अपा