दूर कहीं जानी पहचानी धुन बज रही थी, लगा की सुनी सुनाई सी है, कान के पट थोड़े और खोले तो जान पड़ा कि अपने ही मोबाइल की रिंगटोन थी, छह….पूरी नीद टूट गयी| भारी पलकों से आँख खोली तो ऑटोमोड में हाथ मोबाइल ढूँढने लगा, ज़ोर लगा कर देखने पर भी आँखें धुंधली तस्वीर ही उतार पा रहीं थीं, लगा की कुछ मिस्ड-काल जैसा लिखा है| मरी-थकी उँगलियों से जब गौर करवाया तो देखा आठ मिस्ड-काल थे, उसमें से तीन तो बॉस के, तब कहीं जा कर मुकुंद के शरीर में उर्जा का संचार हुआ| अब दिमाग तो इशारा