गवाक्ष 22== उनका एकांत का समय पूरा हो चुका था, बाहर दर्शन की भीड़ जमा हो चुकी थी, द्वार पर धीमे-धीमे खटखटाहट शुरू हो चुकी थी। उन्होंने मेरी ओर याचना भरी दृष्टि सेदेखा, मेरी योजना वहाँ भी असफ़ल हो चुकी थी। मैंने उनकेदेश में उनके घर जाने का निर्णय लिया । " उनकी पत्नी को ले जाने का विचार आया अथवा उनके पुत्र को”निधी की एकाग्रता भंग हुई । "नहीं, किसीको नहीं, बस उस व्यक्ति के परिवार से मिलने का विचार आया जो अपने परिवार के प्रति न तो कृतज्ञ था, न ही ईमानदार !यहाँ नाटकबाज़ी कर रहा था । बहुत पीड़ा होती है ऐसे लोगों को देखकर