त्‍याग

  • 6.8k
  • 1.5k

कहानी-- त्‍याग आर.एन. सुनगरया मनुष्‍य जब खुश, दु:खी या परेशानी में होता है, तब वह अपने शौक में डूब जाना चाहता है। शराबी शराब में, खिलाड़ी खेल में, फिल्‍म प्रेमी फिल्‍म देखना। इसी तरह मोहन भी सिनेमा के मैदान में आँखें फैलाये हुये अशांतचित खड़ा था। उसने सामने सड़क पर जाते अपने किसी दोस्‍त को देखा, सोचने लगा, कल तो कहता था, जान हाजिर है। और आज इस तरह मुझसे कट के जा रहा है। टोंकूँ या ना टोकूँ आखिर उसने टोक ही दिया, पुकारा, ‘’ओ केशव!’’ कैशव