ज़िन्दगी की धूप-छाँव - 13 - अंतिम भाग

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ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' आदत ‘‘पापा, जल्दी घर आ जाओ. छोटू खेलते-खेलते गिर गया है. सिर से बड़ा खून बह रहा है. मम्मी भी ऑफिस में हैं. डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा.’’ पिंकी घबराई-सी आवाज़ में रामदीन को फोन पर कह रही थी. ‘‘अगले महीने देखेंगे.’’ रामदीन ने दफ़्तर के काम में डूबे-डूबे आदतवश कह दिया. -०-०-०-०-०- अपनी-अपनी दुकान ‘‘पारस जी, ये आपने अच्छा नहीं किया.’’ फोन पर नश्वर जी की ग़ुस्से-भरी आवाज़ गूँज रही थी. ‘‘क्या अच्छा नहीं किया, नश्वर जी?’’ ‘‘ये जो आपने लिखना-पढ़ना व्हाट्सअप ग्रुप में पोस्ट किया है कि मैं अपनी वही रचनाएँ