"अरे! बबुआ। तुम कईसे-कईसे यहाँ पहुँच गए।" रामू काका अचानक मुझे दरवाज़े पर खड़ा पाकर हैरान थे। दरवाज़ा खोलकर झट मुझे अपनी गोद में उठाना चाहा। लेकिन अब मैं इतना भारी हो गया था कि काका उठाने के अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाये। मै हँसते-हँसते उनसे लिपट गया और बोला, "काका अब मैं बड़ा हो गया हूँ। मुझे अब तुम गोद में नहीं उठा सकते।" काका ने तुरंत मुझे अपने गले से लगा लिया। रामू काका मेरे घर में लगभग बीस वर्षों से नौकरी करते हैं। छोटा कद, गहरा रंग, घुटने तक धोती और बाहों वाली गंजी पहने