वर्षों बाद उसे देख रही थी।वह मेरी एक रिश्तेदार का देवर था। मैं उसके सन जैसे सफेद बालों के कारण पहचान ही नही पाई।चेहरे में ज्यादा बदलाव नहीं था।वही बैल जैसी उभरी हुई आँखें ,तोते जैसी नुकीली नाक और पान से लाल मुँह।मैंने पूछा --कैसे है?ईश्वर की असीम कृपा है।सच्चा आदमी हूँ।अपना फर्ज निभाता हूँ।धर्म का आचरण करता हूँ सामाजिक हूँ,इसलिए ईश्वर की विशेष कृपा है।सचमुच आप महान है--मैं मुस्कुराईउसका चेहरा उतर गया उसे लगा कि मेरी मुस्कुराहट में रहस्य है।उसने थोड़ी नाराजगी से कहा--मुझें इसकी परवाह नहीं कि नास्तिक लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं ?मैंने हमेशा धर्म निभाया है