वारिस

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वारिस डरावनी, वीरान और काली रात, जैसे आँखों में काजल लगा कर एकटक घूर रही हो और पछवा के सुरों ने हवा में अपना घरौंदा बना लिया हो। ऊपर से आवा-जाही न होने का घोर सन्नाटा। जँगली झीँगुरों की कनफोड़ू आवाज़ दीमाग में सीटीयों बजाती तो पछवा हवा के जोर से खड़खड़ाते सूख