मेरा स्वर्णिम बंगाल - 8

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मेरा स्वर्णिम बंगाल संस्मरण (अतीत और इतिहास की अंतर्यात्रा) मल्लिका मुखर्जी (8) 10 फरवरी को सुबह उठकर नित्यकर्म से निपटकर हम निकल पड़े विजय मामा के घर की ओर। जब हमने उन्हें अपनी रात वाली दास्तान सुनाई, वे दिग्मूढ़ हो गए। उन्हें काफी शमिर्दगी महसूस हुई। एक ही खून के विभिन्न रंग! उन्होंने कहा, ‘हमारे इस मकान की हालत तो आप देख ही रहे हैं। मैंने यह सोच कर ही आप लोगों को अनिलदा के वहाँ भेजा था कि उनका बिलकुल नया मकान है, पास ही में बेटी के लिए एक करोड़ की आलीशान कोठी बनाई है। आपकी करोड़ो की