भूख*** आज पिताजी का श्राद्ध है, हर साल की तरह हम अनाथालय में भोजन प्रायोजित करना चाहते थे लेकिन शायद इस बार बुकिंग कराने में देर हो गयी थी और जो तारीख हम चाहते थे उस दिन किसी और ने खाना बुक करा दिया। मेरी आँखों में मायूसी सी छा गयी। पतिदेव से मेरा उतरा हुआ चेहरा देखा नही गया। पति महोदय जेल में जेलर की पोस्ट पर तैनात थे तो उन्होंने भोजन की व्यवस्था अपनी जेल में ही कर दी।मन अजीब सी स्थिति में था, इस तरह कैदियों से कभी सामना नही हुआ था। गाहे