एक अनोखा दिन

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आज सुबह से ही मैं बड़ी अच्छे मूड में थी। चाहे आज देर से उठी और तैयार होकर ऑफिस निकलने के लिए देर होने वाली थी पर इससे मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला था। आखिर महीने में एक दिन लेट तो बनता है भाई। और फिर मेरे ऑफिस में तीन लेट मार्क के बाद मेमो आता था। घड़ी में देखा सुबह के आठ बजकर बीस मिनट हो रहे थे। जब की हमेशा मैं छह बजकर तीस मिनट पर ही उठ जाया करती थी। शायद कल रात की देर तक चली शीना की बड्डे पार्टी में कुछ ज्यादा ही