मेरे घर आना ज़िंदगी - 6

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मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (6) धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय.......... बताया गया था कि हवाई यात्रा 35 मिनट की होगी। उन 35 मिनटों में बेमौसम बौर महके थे जो पोर पोर मुझे महका गए थे। मेरे अंदर समंदर हिलोरे ले रहा था और मैं बालूहा तट पर खुद को दौड़ते पा रही थी । राजकोट से मुंबई की उड़ान ने जब सांताक्रुज एयरपोर्ट पर लैंड किया तो गुलाबी शॉल में दुबके हेमंत ने अपनी बेहद चमकीली काली आंखें झपकाईं और विजय भाई ने जो हमें रिसीव करने आए थे उमंगकर हेमंत को गोद में