चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 6 ‘इसका बाप अपने आपको बड़का बाभन बूझता है। सरयूपारी। क्या तो तरवा का बिआह सरयूपारिये में करेगा!’ रमेश पांडे ने पिच्च से खैनी के साथ ही जैसे तिताई भी थूकी, ‘बाभनो सब में कम घोर-मट्ठा नहीं है।’ पिन्टू का चेहरा स्याह पड़ गया। वह जो उसके अंदर जादू-सा जगा रहा था, तिरोहित होता-सा जान पड़ा। उसने कांउटर कसकर पकड़ लिया। पैर जमीन पर जमाया, गोकि खुद को जमीन पर लाने की कोशिश कर रहा हो। सायास खिंच गई चुप्पी के इस पार पिन्टू था, तो उस पार रमेश पांडे थे। भारी मन