बुखार प्रियदर्शन वह बाईस मार्च का दिन था। प्रधानमंत्री के आह्वान पर वह अपनी बालकनी पर खड़े होकर एक प्यारी सी घंटी बजा रहा था। यह घंटी उसने अपनी दुछत्ती पर पड़े पुराने सामानों के बीच से खोज कर निकाली थी। बरसों पहले- यानी क़रीब 25 बरस पहले- वह जब गया से दिल्ली के लिए चला था तो अपने साथ बहुत सारे ज़रूरी सामान के अलावा बहुत सारी ग़ैरज़रूरी भावुकता भी ले आया था- यह घंटी उसी भावुकता की बची हुई निशानियों में एक थी। दरअसल यह घंटी उसकी दादी बजाती थी- हर सुबह बिना नागा अपने कृष्ण कन्हैया के