ख़ामोश आवाजें...

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__१__हक भी अदा किया है.... जिस्म से मानो जान को जुदा किया है। इक बाप ने अपनी बेटी को विदा किया है।। सब मांगते हैं यहां हक अपना-अपना मगर। आज इक मां ने अपना हक भी अदा किया है।। ये दीवानों अपने महबूब को महबूब ही रहने दो। कभी उसका न हुआ जिस जिसने उसे खुदा किया हैं।। हर इक ग़ज़ल में मैंने उसकी सूरत सजाई है। हर इक लफ्ज़ में मैंने उसका सजदा किया है।। खंजर की तरह चुभती है मेरे सीने में यादें उसकी। मगर मैंने फिर भी "सत्येंद्र" उसे याद सदा किया है।। कैसे दीवाने हैं इस दौर के कांटों के ज़ख्म