स्त्री तू सबसे बड़ी अछूत

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'तू अछूत है मेरे घर मत आना ...|’--आखिर तूने खानदान की नाक कटा दी न ....|‘’मुझे तो पहले से मालूम था ये लड़की कोई न कोई गुल खिलाएगी |’’‘अरे,किया भी तो कहाँ...कोई ढंग का लड़का नहीं मिला क्या इसे ...?’तमाम विष बुझे तीरों को झेलती मैं सिर झुकाए उस दहलीज पर खड़ी थी ,जिसे कल तक मैं अपना घर समझती रही थी |पर कब था यह मेरा घर ?इस घर के सदस्यों ने तो कभी मुझे समझने का प्रयास नहीं किया था ,फिर आज कैसे करते ?आज तो मैंने ऐसा काम कर दिया है,जिसे बड़े से बड़े प्रगतिशील भी सिर्फ