चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 5 पिन्टू के पास कुल जमा-पूंजी सौ का यही नोट था और इसे वह दिगंबर मिश्रा को दे दे, ऐसा सोचना ही कष्टकर था। तब? कहां से लाये वह सौ रुपए? ठीक इसी वक्त उसकी छठी इंद्री जागृत हुई और उसने अंधेरे में तीर दाग दिया,‘ए बाबा, लाइए न सौ रुपया उधर1 एकाध् दिन में दे देंगे।’ पिन्टू के लहजे में निहोरा था। रमेश पांडे ने मन ही मन मजा लेते हुए चुटकी ली,‘स्साला, कहां तो दारू पिला रहा था, कहां उधर मांगे लगा। तुमरा कौनो भरोसा ना है।’ ‘बताइए, दीजिएगा कि नहीं?’