कहानी-- लहरें --आर. एन. सुनगरया किसी भी जवान लड़की के लिये सुहागरात का इन्तजार कितना सुखद और मधुर होता है। इससे भी अधिक तीव्र रोमान्चकारी एवं तरंगित कर देने वाला वह इन्तजार होता है, जो सुहागरात को ही किया जाता है। यानि अपने साजन का इन्तजार। सुशीला भी इसी इन्तजार में लहरा रही है। ऑंखें मींचे भी वह ऐसे-ऐसे रमणीक दृश्यों को निहार रही है। जहॉं के सजीव सौन्दर्य को देखकर अन्य कुछ भी देखना अच्छा नहीं लगता। क्षणभर में उसके सामने अतीत के अनेक सुख-दु:ख पूर्ण वाक्यात कौंध जाते हैं। कभी मॉं