सधे हुये आखेटक बैठे चारों ओर मचान पर...!

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केबीएल पांडे के गीत नवगीत- सधे हुये आखेटक बैठे चारों ओर मचान पर...! जाने कब से सोच रहा हूँ मै भी कोई गीत लिखू ! खुशियों में खोये सोये अपने हिंदुस्तान पर!! इतनी दूर आगये हम उत्पादन के इतिहास में, भूल गये अंतर करना अब भूख और उपवास में! बन्द किवाडो भीतर जाने लक्श्मी कैसे चली गयी, यहाँ लिखे भर रहे लाभ शुभ पूरे खुले मकान पर....!! जाने कब से सोच रहा हूँ मै भी कोई गीत लिखू .... शेष नही कोई सम्वदन सम्वादो में कथ्य में, असली नाटक खेल रहे हैं कलाकार नेपथ्य में! तिनका दाबे