वो होती तो...

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वो होती तो... स्त्री, शब्द ही काफी है खुद को व्यक्त करने को, पीड़ा और सहनशीलता की मिसाल सामने आ जाती है और हम ढूंढने लगते हैं उसमे असीम सम्भावनाएं बिना जाने वो क्या चाहती है ? उसकी चाहतों से परे एक देश सिमटा होता है उसके जीवन के आँगन में, हाँ, उसका देश जो उसके घर से शुरू होता है, रिश्तों के सम्बन्ध बनते हैं जिसकी सीमाएं और जिसे संजोने को वो एक कर्मठ सैनिक की भांति चारों दिशाओं पर निगाह रखते हुए अपने कर्तव्य को अंजाम देती है और खुद की आहुति देती रहती है फिर चाहे कितनी