क्षत्राणी--कुंती की व्यथा - (भाग 1)

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"मुझे राज्य के छिन्न जाने का दुख नही है।पुत्रो के जुए मे हार जाने और वनवास जाने का भी बिल्कुल दुख नही है।परंतु भरी सभा मे मेरी पुत्र वधू का जो अपमान हुआ है और रोते हुए द्रौपदी ने कौरव सभा मे जो कटु वचन सुने,वही मेरे लिए महान दुख का कारण बन गया है।"शकुनि की सलाह पर दुर्योधन ने पांडवों को जुआ खेलने का निमन्त्रण दिया था। पांडव जुए में अपने को, अपने राज को औऱ पत्नी द्रोपदी को भी हार गए थे।तब भरी सभा मेे दुर्योधन अट्टहास करके विदुुुर से बोला"तुम पांडवो की प्रियतमा द्रोपदी को यंहा