कहानी पिघलती बर्फ डॉ. हंसा दीप आज एक बार फिर कुछ टूटा है भीतर और इतनी जोर से टूटा है कि धमाके के अलावा सब कुछ शांत है। ऐसी शांति जिसमें आदमी खो जाता है हमेशा के लिए। खुद को खोने और ढूँढने का खेल खेलना शायद उसकी आदत बन गई है। भारत से केन्या, केन्या से कैनेडा और कैनेडा से अमेरिका के रास्तों में खोती रही वह, टूटती रही, बिखरती रही, जुड़ती रही और इस लुका-छिपी के खेल में ढूँढती रही स्वयं को। कभी सी.एन. टावर की ऊँचाइयों में तो कभी ट्विन टावर की सुलगती राख