तानाबाना - 11

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तानाबाना 11 आखिर यह दिन जैसे तैसे बीत गया । जो गुंधा आटा और दही वे साथ ले आए थे , रात को उसी को जैसे तैसे लकङियां इकट्ठी करके सेका गया । भूखे बच्चों के हिस्से एक एक रोटी ही आई । वह भी किसी के गले लहीं उतरी । उतरती कैसे , न चकला न बेलन न तवा न कोई दाल सब्जी । यहाँ तक कि नमक की डली भी नहीं । कहाँ सारा परिवार दूध , मक्खन का आदी था , यहाँ रोटी भी दुर्लभ हो गयी । किसी परिवार के पास थोङा गुङ था