पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 17

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पूर्णता की चाहत रही अधूरी लाजपत राय गर्ग सत्रहवाँ अध्याय कैप्टन ग़ुस्से में घर से तो निकल आया था। सड़क पर आने पर उसे होश आया। भावी परिणाम की आशंका से उसके सारे शरीर में सिहरन-सी व्याप गयी। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वालों के लिये तो रात्रि समाप्त हो गयी थी,