वशुबा.

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रोज़ सुबह ५ बजते ही वशु बा उठ जाती और अपने नित्या कर्म निपटाती , बड़ी सादी, सरल, वशु बा, सफ़ेद साड़ी, माथे पर चंदन का तिलक, गले में रुद्राक्ष की माला, हमेसा शिव शंभु की माला जपने वाली वसु बा, लोग बड़ा आदर करते थे उनका बच्चा तो बच्चा बड़े लोग भी उनको वशु बा ही कहके बुलाते थे, वो रोज़ अपने हाथ में पूजा की थाली जिसमें कंकु, चंदन, चावल, और फ़ुल लिए, दूसरे हाथ में ताम्बे का लोटा उसमें थोड़ा पानी और थोड़ा दूध मिलाकर नंगे पाँव ही अपने नुक्कड़ वाले मंदिर के लिए चल पड़ती.मंदिर का