कैपेचीनो कुछ कहानियाँ सत्यता के इतने करीब होती हैं कि कहानियां लगती ही नहीं और कुछ हकीकतें वक़्त के साथ ऐसी हो जाती हैं जो पूरी ज़िंदगी सिर्फ कहानियों सी लगने लगती हैं। ऐसी ही एक कहानी जो हकीकत थी या फिर सिर्फ एक कहानी, अर्जुन शायद खुद नहीं समझ सका। कल सोसाइटी के गणपति विसर्जन के बाद, अर्जुन आज सुबह खिड़की पर लगे पर्दों के बीच से आती हुई किरणों की तरफ टकटकी लगाकर देख रहा था। अभी तो दिन अच्छे से निकला भी नहीं था न जाने क्या व्याकुलता थी अर्जुन के मन में। वैसे यह कुछ