गो एंड गेट मैरिडपूरे सप्ताह फिर समय नहीं मिला मुझे। अंदर से आक्रोश से भरी थी मैं। उस दिन शाम में संयोगिता का फोन आया। आज तक कोई बात छुपाई नहीं थी उससे। लगातार बोलती गई मैं। अंदर से कहीं उम्मीद थी कि कुछ बोलेगी संयोगिता और हमेशा की तरह मुझे शांत कर देगी।हमेशा की तरह पूरी बात शांति से सुना उसने और फिर कहा - "कई महीनों से तुमसे कहना चाहती थी मैं ये। हर्ष इज टेकिंग यू फॉर ग्रांटेड। उसे लगने लगा है कि कुछ भी करे वह, तुम उसे छोड़ नहीं सकती।"सिर घूम गया मेरा उस दिन।