जयगाथा - 3

  • 6.4k
  • 1
  • 2k

गतांक से आगे.... देवताओं के गुरु थे ऋषि अंगिरा के परम तेजस्वी और विद्वान पुत्र बृहस्पति और दैत्यों के गुरु और पुरोहित थे संजीवनी विद्या जानने वाले परम प्रतापी शुक्राचार्य ।अमृत पीकर देवतागण अमर हो चुके थे । वे दानवों का वध कर देते । दानवों की संख्या कम होने लगी तब उन्होंने अपने गुरु शुक्राचार्य के निकट जाकर अपनी व्यथा कही-- दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उनको सान्त्वना दी । “ चिंतित न हो शिष्यों ! मैं तुम सबको पुनः जीवित कर दूँगा ।” दैत्य प्रसन्न हो गए । शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या से उन सबको पुनर्जीवित कर देते थे,