अब बेचैनिया एसी हो गई थी हम रोज़ मिले तो भी कम था एसा कैसे जिएंगे कुछ समझ नहीं आ रहा था मै ने कंप्यूटर की पढ़ाई के बहने मिलने लगा और नजदीकियां बढ़ती रही जब मेरा ट्रैनिंग का स्थान निर्धाित हुआ 16 जून उस दिन बस ओ खुलकर रो नहीं पाई लेकिन आंसू उसकी नजरों में बने रहे वो मेरी आख़िरी मुलाक़ात थी हम घंटे भर इक दूसरे को देखते कब कॉफी काफी ठनडी हो गई हमे प पता ही नहीं चला हम बस देखते रहे एक दूसरे को। मै अगले दिन सामान लेने अपने प्रयोग जो ट्रैनिंग के