पूर्ण-विराम से पहले....!!! 8. न जाने कितनी देर तक मैं प्रीति के कमरे के बाहर खड़ा रहा| उस समय डॉक्टर द्वारा बताया हुआ मृत्यु का अनिश्चित समय मुझे अंदर ही अंदर कंपन दे रहा था| जीवन के किसी भी पल में हम अपने प्रिय को खो सकते हैं यह डर कितना भयावह हो सकता है मैंने उसका अनुभव किया| जब मेरे अर्दली ने मुझे कमरे में आकर बैठने को कहा तब मैं अंदर घुसा| अर्दली ने मुझे पानी पिलाया और थोड़ा आराम करने को कहा| कमरे में पहुंचकर जैसे ही मैंने प्रीति पर अपनी दृष्टि डाली उसकी निगाहों में मुझे