आधी दुनिया का पूरा सच - 24

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आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 24. प्रात:काल स्त्री का चिर-परिचित मृदु-मधुर स्वर सुनकर रानी की नींद टूटी, तो वह आश्चर्य से चौंक कर उठ बैठी - आंटी, आप ! इतनी सुबह ! फिर अंटी कहा तूने ! मौसी बोलने में जीभ जलती है तेरी ? नहीं मौसी, मैं भूल गयी थी ! पर आज आप इतनी जल्दी यहाँ ? क्यूँ ? मैं यहाँ जल्दी नहीं आ सकती ! मौसी, मेरा यह मतलब नहीं था ! पता है मुझे तेरा मतलब ! चल खड़ी हो ! दुकान पर नहीं चलना है ? चलना है, मौसी ! यह कहते हुए रानी