केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 16 बारूद के ढेर पर घर की आर्थिक-मानसिक दुश्वारियों से बेखबर आर्या धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। दोनों बड़ों के दुनियावी बदलाव से बेखबर आर्या अब हाईस्कूल में चली गयी थी। नंबर एक शैतान, पूरा घर सिर पर रखती। पापा-मम्मी के साथ खूब बातें करती, स्कूल की, दोस्तों की। बाहर कड़ाके की ठंड और बर्फ के कारण बच्चे घर में बंद हो जाते। मॉनोपाली की तरह कई बॉक्स गेम थे जो सर्दियों में अपने परिवार के साथ घर के अंदर बैठकर बच्चे खेलते। “ममा, आप जल्दी हार जाती हैं।” “पापा तो कभी नहीं हारते।” मासूमियत