एक बूँद इश्क (19) एक बार फिर से उन्हीं सर्पीली, घुमावदार और लुभावनी सड़कों पर होती हुई उनकी गाड़ी 'कान्हू रिजार्ट'पर जा लगी। गणेश और शंकर पहले से उनकी राह देख रहे हैं। गाड़ी के रुकते ही मिलने को अधीर हो उठे। सब्र का बाँध दोनों ही सिरों से टूटा है। अश्रुधारा रीमा की आँखों मे ही नही है गणेश और शकंर की आँखें से भी झर-झर आँसू बह रहे हैं। दोनों तरफ की निश्छल, पवित्र संवेदनायें सभी पर अपना प्रभाव डाल रही हैं। बाबूराम समेत परेश भी हतप्रत है। जैसे मायके पहुँचते ही लड़की चिड़िया बन चिहुकंने लगती है